आजकल घर जाकर वो पहले वाली ख़ुशी महसूस नहीं होती,
कुछ दूरियां हैं जो घटती वायुसेवा की दरों से भी,
तय नहीं होती.
बचपन में पढ़ा था,
विज्ञानं की किताब में लिखा था,
कौन रुका है,
और कौन गतिमान,
यह आप तय नहीं कर सकते..
जबतक की
ये गति आप किसी के परिपेक्षेय में नहीं रखते.
मैं जड़ हो गयी हूँ शायद,
या ये रिश्ते गतिमान हैं.
ज़िन्दगी भी अब
परिपेक्षेय में नहीं आती,
जीवन का ये विज्ञानं,
एक नया तर्कशास्त्र सा दीखता है.
विज्ञान तो चुप है ही,
तर्कशास्त्र से भी कुछ खास उम्मीद नहीं,
क्योंकि तर्क का 'क' भी तो,
वो चुरा लायी हैं.
हाँ,
अब सितारों(स्टार) का एक नया परिवार है.
सितारे या सोच,
फिर से,
गति का कुछ पता नहीं चलता.
मैं जड़ हो गयी हूँ,
या ये रिश्ते गतिमान,
फिर से ज़िन्दगी परिपेक्ष्य में नहीं आती.